Baba Sawan Singh Ji और Shah Mastana Ji Maharaj का पवित्र संबंध: एक आध्यात्मिक यात्रा

भारत की आध्यात्मिक परम्परा विभिन्न संतों, महापुरुषों और सतगुरुओं की उस अविरल धारा से सिंचित है, जिन्होंने समाज को सच्चाई, प्रेम, सेवा और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इन्हीं में दो महान नाम हैं—Baba Sawan Singh Ji Maharaj और Shah Mastana Balochistani Ji Maharaj। दोनों का संबंध मात्र गुरु-शिष्य का रिश्ता नहीं था, बल्कि यह आत्मिक जगत का वह दिव्य मिलन था जहाँ खोज, समर्पण और दया एक साथ झलकते हैं।

यह लेख Baba Sawan Singh Ji और Shah Mastana Ji Maharaj के आध्यात्मिक संबंध, उनकी पहली मुलाकात, दीक्षा, मार्गदर्शन और आगे चलकर सिरसा में Dera Sacha Sauda की स्थापना तक के इतिहास को विस्तार से समझाता है।

Baba Sawan Singh Ji कौन थे?

Baba Sawan Singh Ji (1858–1948) 20वीं सदी के प्रमुख आध्यात्मिक पुरुषों में से एक थे। उन्हें Radha Soami Satsang Beas का दूसरा सतगुरु माना जाता है।
उनका जीवन अनुशासन, करुणा, अध्यात्म और गहन ध्यान-साधना से भरा हुआ था। उन्हें “The Great Master” के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

उनका प्रमुख संदेश था—

  • आत्मा का मूल परमात्मा है।
  • नाम-भक्ति और ध्यान के माध्यम से ही आत्मा अपने स्रोत तक पहुँच सकती है।
  • धर्म जाति-पंथ नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का मार्ग है।
  • सत्य, प्रेम और सेवा ही सच्ची आध्यात्मिकता की पहचान है।

इनकी सत्संग परंपरा में कई साधक आए, लेकिन उनमें सबसे विशिष्ट नाम Shah Mastana Ji Maharaj का है, जिन्होंने न केवल अपने जीवन को बदल दिया, बल्कि लाखों लोगों के जीवन का उद्देश्य भी परिवर्तित किया।

Shah Mastana Ji का आध्यात्मिक खोज का सफर

Shah Mastana Ji का जन्म 1891 में बलूचिस्तान (अब पाकिस्तान) में हुआ। जन्म से ही उनमें दिव्यता की झलक थी। बचपन में ही उन्हें सांसारिक जीवन की अस्थिरता का अहसास होने लगा था। लगभग 14–15 वर्ष की आयु के बाद उन्होंने आध्यात्मिक सत्य की खोज में निकलना शुरू किया।

वे किसी साधारण गुरु की तलाश में नहीं थे; वे उस “सच्चे सतगुरु” की खोज में थे जो आत्मा को उसके मूल से मिला सके।
वर्षों की तपस्या-यात्रा में उन्होंने विभिन्न संप्रदायों और साधुओं से संपर्क किया, लेकिन मन की प्यास न बुझी।

कई वर्षों की यह तीर्थ-यात्रा तब पूर्ण हुई जब वे Beas (पंजाब) पहुँचे।

Shah Mastana ji

पहली मुलाकात: जब साधक को मिला अपना सतगुरु

Beas पहुँचकर Shah Mastana Ji ने पहली बार Baba Sawan Singh Ji के दर्शन किए।
कहते हैं कि वह क्षण ही सब कुछ बदल देने वाला था।

जैसे ही उनकी नज़र Sawan Singh Ji पर पड़ी, उन्हें अनुभव हुआ—
यही वह सच्चे सतगुरु हैं जिनकी मुझे वर्षों से तलाश थी।”

उनकी श्रद्धा, समर्पण और प्रेम की गहराई देखकर, Sawan Singh Ji ने भी तुरन्त पहचान लिया कि यह साधक साधारण नहीं है।
उनमें दिव्य गुण और जन्मजात आध्यात्मिक शक्ति मौजूद है।

इस मुलाकात के बाद Shah Mastana Ji ने स्वयं को पूर्णतः Sawan Singh Ji को समर्पित कर दिया।
उनकी खोज समाप्त हुई और आत्मिक जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।

नाम-दान और आध्यात्मिक अभ्यास

Sawan Singh Ji ने Mastana Ji को अन्तर्मुखी साधना का विज्ञान, नाम-सिमरन, भक्ति और ध्यान की विधि प्रदान की।
मस्ताना जी ने अत्यधिक निष्ठा, अनुशासन और समर्पण के साथ अभ्यास किया, जिसके परिणामस्वरूप वे तीव्र गति से उन्नति करने लगे।

उनका हृदय करुणा से भर गया।
उनकी वाणी में मधुरता आ गई।
उनका जीवन तप, सेवा और विनम्रता का प्रतीक बन गया।

Sawan Singh Ji ने अक्सर कहा—

मस्ताना दी आत्मा तेज़ चाल नाल चढ़ रही है।”

यह दर्शाता है कि गुरु ने अपने शिष्य में असाधारण आध्यात्मिक क्षमता देखी थी।

गुरु द्वारा सौंपा गया विशेष दायित्व

Mastana Ji का अपने मुर्शिद सतगुरु Baba Sawan Singh Ji Maharaj से बेहद प्रेम था और वो हमेशा अपने मुर्शिद का गुणगान गाया करते, ब्यास में उस समय सभी लोग समाधि लगाकर बिना किसी को बुलाये चुपचाप भक्ति में लीन रहते लेकिन साईं जी का अंदाज निराला था, साईं जी जब भी सावन शाह जी को देखते तो नाचने लगते इतना नाचते कि लोग देखते रह जाते और सावन शाह जी को देखकर साईं जी बोलते “धन धन सावण शाह, तेरा ही आसरा” साईं जी की मस्ती को देखते हुए सावण शाह जी ने साईं जी को अपने पास बुलाया और कहा कि भाई यहां पर सब लोग कुछ और नारा बोलते हैं, साईं मस्ताना जी महाराज ने अत्यंत पवित्र दिल से सावण शाह जी को बोले कि हमने तो आपको ही देखा है, हमारे लिए तो आप ही भगवान हो, आपको देखकर ही हमारी रूह खिली है, इसलिए हम तो ऐसे ही बोलेंगे “धन धन सावण शाह तेरा ही आसरा”। तो सावण शाह जी ने फरमाया की आप गुणगान ही गाते हो तो उस सतगुरु (अल्लाह , वाहेगुरु, गॉड,) के गाओ , ‘सतगुरु ‘सर्व धर्म का सांझा शब्द है और साई जी ने तब से ‘धन धन सावन साई निरंकार तेरा ही आसरा’ की जगह , “धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा” का नारा दिया और साई मस्ताना जी महाराज ने ये नारा कबूल किया और तब से ही धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा नारा बोला जाता है । जब भी बाबा सावन सिंह जी साईं मस्ताना जी को देखते तो बड़े खुश हो जाते । साईं जी को हर समय नाचता देखकर सावन शाह जी ने वचन किये वाह मस्ताना वाह। उस दिन साई जी का नाम खेमामल से मस्ताना हो गया और बाबा सावन सिंह जी ने वचन फरमाए जा मस्ताना हम तुम्हे बागड़ का बादशाह बनाते है वहाँ जाकर रूहों का उद्धार करना और बख्शिशे प्रदान की |

धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा” का नारा पूज्य बेपरवाह जी ने अपने मुर्शीदे कामिल से मंजूर करवाया

सिर्फ नारा ही नहीं मंजूर करवाया बल्कि सच्चा सौदा के प्रेमी जिन्होंने नाम ले रखा है और थोड़ा बहुत सिमरन भी करता है, वचनों का पूरा पक्का है हर वचन मानता है उससे ना तो अंदर से कोई कमी रहेगी और ना ही बाहर |

वचनों व सुमिरन के पक्के प्रेमी को कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा |

बाबा सावन सिंह महाराज ने फरमाया जा मस्ताना तेरा ये मंजूर |

Shah Mastana ji

सिरसा की धरती पर नई अध्यात्मिक धारा की शुरुआत

Sawan Singh Ji के आदेश के बाद Mastana Ji ने यात्रा शुरू की, और अंततः 29 अप्रैल 1948 को सिरसा (हरियाणा) में Dera Sacha Sauda की नींव रखी।

“सच्चा सौदा” का अर्थ था—
सत्य का व्यापार, अर्थात ईश्वर के नाम का सौदा।

यह संस्था जात-पात, धर्म-मत से परे थी। हर किसी का स्वागत था।
मस्ताना जी ने समाज को बताया—

  • मनुष्य शरीर ईश्वर द्वारा दिया गया अनमोल अवसर है।
  • इसका उद्देश्य केवल खाना-पीना नहीं, बल्कि आत्मा को परमात्मा से मिलाने का मार्ग खोजना है।
  • सेवा, विनम्रता और भाईचारा ही सच्चे मनुष्य की पहचान है।

मस्ताना जी ने सिरसा के लोगों में अध्यात्म के प्रति नई लहर जगाई।
सैकड़ों लोग उनके प्रेम, सहजता और दिव्य वाणी से प्रभावित होकर उनके साथ जुड़ने लगे।

Sawan Singh Ji का मस्ताना Ji पर विश्वास

यह संबंध केवल गुरु-शिष्य तक सीमित नहीं रहा।
Sawan Singh Ji ने Mastana Ji में अद्भुत योग्यता देखी, इसलिए उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वे आगे चलकर एक बड़े आध्यात्मिक मिशन को संभालेंगे।

Sawan Singh Ji ने कहा था—

मस्ताना दी झोली ईश्वर भरेगा। जा मस्ताना तेरी आवाज़ खुदा दी आवाज़ होगी”

उनके इन शब्दों का अर्थ था कि मस्ताना जी के माध्यम से लाखों लोग आध्यात्मिक लाभ पाएंगे।

आज यह सत्य बन चुका है।

Dera Sacha Sauda — एक नया अध्यात्मिक आंदोलन

Mastana Ji ने 1948 से 1960 तक सिरसा और आसपास के क्षेत्रों में आध्यात्मिकता, नाम-भक्ति और सेवा के कार्यों को बढ़ावा दिया।

उन्होंने:

  • शराब छोड़ने
  • नशे छोड़ने
  • मानवता की सेवा करने
  • निःस्वार्थ मदद करने
  • जात-भेद मिटाने
  • सकारात्मक जीवन जीने

जैसे संदेशों को लोगों में फैलाया।

उनकी शिक्षा का सार था—

सच्चा सौदा वही है जिसमें मनुष्य ईश्वर के नाम से लाभ उठाए।”

Sawan Singh Ji के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के चलते Dera Sacha Sauda आगे बढ़ा और लाखों लोगों तक आध्यात्मिक जागृति पहुँची।

यह संबंध क्यों अनोखा था?

Baba Sawan Singh Ji और Shah Mastana Ji का संबंध तीन कारणों से बहुत विशेष माना जाता है—

  1. आध्यात्मिक खोज और उसकी पूर्णता

मस्ताना जी ने वर्षों की खोज के बाद अपना सच्चा गुरु पाया।

  1. गुरु की गहरी दृष्टि

Sawan Singh Ji ने उन्हें वह दायित्व दिया, जो केवल किसी योग्य, सत्यनिष्ठ और ईमानदार साधक को ही मिलता है।

  1. एक नया आध्यात्मिक मार्ग

मस्ताना जी ने दिये गए आदेश को पूरी निष्ठा से निभाया और नई अध्यात्मिक धारा—Dera Sacha Sauda—की स्थापना की।

निष्कर्ष

Baba Sawan Singh Ji और Shah Mastana Ji Maharaj का संबंध भारतीय आध्यात्मिक इतिहास में एक उज्ज्वल अध्याय है।
यह गुरु-शिष्य के बीच विश्वास, समर्पण, प्रेम और आध्यात्मिक विकास का अद्भुत उदाहरण है।

Shah Mastana Ji की आध्यात्मिक यात्रा Sawan Singh Ji से शुरू हुई और उनके आदेश पर सिरसा में एक नए प्रकाश-स्तंभ — Dera Sacha Sauda — की स्थापना हुई, जिसने बाद में लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।

उनका यह रिश्ता यह संदेश देता है—

जब साधक सच्चे मन से खोज करता है, तो ईश्वर उसे उसके योग्य सतगुरु से अवश्य मिलवाता है।”